Wednesday, June 20, 2012

ek kavita


मेरे  मित्रों , कुछ समय पहले अपनी एक उड़ान के दौरान जो महसूस किया वो लिखा ...आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ .....
चारू 

बादलों से  परे आसमान और भी है 
विमान के झरोखे से देखा तो लगा 
एक आसमान बादलों के नीचे और एक ऊपर भी है 
मन हुआ हाथ से छु लूं इस रुइनुमा बादल को 
पर यह शीशा बीच में आ गया 
मन हुआ घर ले जाऊ इस बादल को 
कैद कर लूं अपने कैनवस में 
उन भीनी ओस की बूंदों के लिए 
पर फिर लगा , नहीं , इसे तो आज़ाद उड़ने की आदत है 
सूरज की किरणों में रंग बदलने की आदत है 
मेरे कमरे में यह घुल जाएगा , और 
एक ही झटके में पानी बन जाएगा 
फिर कैसे मैं इसे आसमान से अलग करूँ 
कैसे सूरज की किरणों से बेवफाई करूँ 
येही किरने तो  बादल को कभी पीला, कभी नारंगी, कभी लाल, कभी सुर्ख रंग देती हैं 
ऐसा लगता है बादल कपडे बदल रहा है 
यह बादल ही तो आसमान को दो भागों में बांटता है 
एक उसके ऊपर और एक नीचे 
मैं इसे ले गयी तो बारिश का क्या होगा 
इनकी गर्जन से आई मुस्कान का क्या होगा 
इनके बरसने से आई खुशहाली का क्या होगा 
येही सोचते सोचते लो अपनी मंजिल भी आ गयी 
और एक बात जो हमेशा सुनते आये थे वो भी समझ आ गयी 
की प्रकृति से खिलवाड़ नहीं करो , यह भगवन की देन है 
उसे सहेज कर रखो तभी वोह हमें सहेजेगी